(1) मेरे दिल को तोड़ कर तुम जाओगे जहाँ,
मेरी बात याद तुमको आयेगी वहाँ,
मैं तो अपना समझकर तुझे माफ कर दूंगा,
मगर माफ न करेगा तुमको ये जहाँ ।
(2) तनहाई जब मुकद्दर में लिखी हैं,
तो क्या सिकायत, अपनों और बेगानों से,
हम मिट गए जिनकी चाहत में,
वो बाज नहीं आते हमको आजमाने से।
(3) न करते शिकायत जमाने से कोई,
अगर मान जाता मनाने से कोई,
किसी को क्यूँ याद करता कोई,
अगर भूल जाता भुलाने से कोई।
(4) समझा न कोई दिल की बात को,
दर्द दुनियाँ ने बिना सोचे ही दे दिया,
जो सह गए हर दर्द को हम चुपके से,
तो हमको ही पत्थर - दिल कह दिया।
(5) करता रहा फरेब कोई सादगी के साथ,
इतना बड़ा मज़ाक मेरी जिंदगी के साथ,
शायद मिली सज़ा इस जुर्म का मुझे,
हो गया था प्यार मुझे एक अजनबी के साथ।
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