Read Complete Story Of Navratri Festival in Hindi. Find All Information About Navratri History, Story Behind Navratri in Hindi And Navratri Kyu Manaya Jata Hai Uske Bare Me Puri Jankari Hindi Me.
Navratri Ka Mahatva in Hindi | Navratri Ki Katha
नवरात्रि की प्रथम कथा
एक कथा के अनुसार लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था भी करा दी। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया। यह बात पवन के माध्यम से इन्द्रदेव ने श्रीराम तक पहुँचवा दी।
इधर रावण ने मायावी तरीक़े से पूजास्थल पर हवन सामग्री में से एक नीलकमल ग़ायब करा दिया जिससे श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए। श्रीराम का संकल्प टूटता नज़र आया। सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कहीं माँ दुर्गा कुपित न हो जाएँ। तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें ..कमल-नयन नवकंज लोचन.. भी कहा जाता है तो क्यों न एक नेत्र को वह माँ की पूजा में समर्पित कर दें। श्रीराम ने जैसे ही तूणीर से अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं और कहा कि वह पूजा से प्रसन्न हुईं और उन्होंने विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
दूसरी तरफ़ रावण की पूजा के समय हनुमान जी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर वहाँ पहुँच गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों से एक श्लोक ..जयादेवी..भूर्तिहरिणी.. में हरिणी के स्थान पर करिणी उच्चारित करा दिया। हरिणी का अर्थ होता है भक्त की पीड़ा हरने वाली और करिणी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली। इससे माँ दुर्गा रावण से नाराज़ हो गईं और रावण को श्राप दे दिया। रावण का सर्वनाश हो गया।
Nav Durga Story in Hindi
नवरात्रि की द्वितीय कथा
एक अन्य कथा के अनुसार महिषासुर को उसकी उपासना से ख़ुश होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वर प्रदान कर दिया था। उस वरदान को पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवतओं के भी अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा।
देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने माँ दुर्गा की रचना की। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए थे जिससे वह बलवान हो गईं। नौ दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुरमर्दिनी कहलाईं।
Navratri in Hindi Essay
वर्ष में दो बार नवरात्रि क्यों?
नवरात्रि साल में दो बार मनाया जाने वाला इकलौता उत्सव है- एक नवरात्रि गर्मी की शुरुआत पर चैत्र में और दूसरा शीत की शुरुआत पर आश्विन माह में। गर्मी और जाड़े के मौसम में सौर-ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है। क्योंकि फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने, ठंड से राहत देने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य इस दौरान संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है। प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं। इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। एक बार इसे सत्य और धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी बार इसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
Navratri Ke Baare Mein Puri Jankari Hindi Me
नवरात्री हिन्दुओ का पर्व है जिसमे माँ दुर्गा के प्रति आस्था प्रकट की जाती है, नवरात्री का अर्थ है नौ राते, इस दौरान भक्त प्रतिपदा से नवमी तक देवी शक्ति (लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा) के नौ रूपों की उपासना करते है. साल में नवरात्री चार बार चैत्र, आषाढ़, आश्विन, माघ महीने में आती है, लेकिन चैत्र नवरात्री और आश्विन महीने की नवरात्रि प्रमुख है। जिसे पुरे भारत में खासकर उत्तरी भारत मे भक्त बड़ी धूम धाम से मनाते है.
Navratri in Hindi Wikipedia
नवरात्री में किन नौ देवियों की पूजा होती है
नवरात्री के पहले से लेकर नौवे दिन दिन तक नौ देवियों की पूजा और अर्चना की जाती है, नवरात्री के पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता छठे दिन कात्यायनी सातवे दिन कालरात्रि आठवे दिन महागौरी नौवे दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है.
चैत्र नवरात्री और महत्त्व
नवरात्रों का धार्मिक महत्व के साथ साथ आध्यात्मिक और वैज्ञानीक महत्व भी है, नवरात्रे का त्यौहार प्रतीक है बुराई शक्तियों के अंत का और अच्छाई के जन्म का. नवरात्री के नौ दिन में किये जाने वाले व्रत और पूजन का हमारे जीवन पर भी बहुत असर पड़ता है, जीवन में आत्म अनुशासन, शुद्धिकरण और संयम बनाये रखने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है.
चैत्र नवरात्री विक्रम संवत के शुरुआती दिन यानि चैत्र प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है, पुराणों के अनुसार नवरात्रे के पहले दिन देवी आदिशक्ति ने अवतार लिया और देवी के कहने पर ब्रह्म ने चैत्र प्रतिपदा से सृष्टि की रचना करना प्रारम्भ किया. जिसके कारण चैत्र मास शुक्ल की प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है. चैत्र नवरात्री वसंत ऋतू की शुरुआत का प्रतीक भी है
नवरात्री में भक्त व्रत (fast) रखते है, नियम, साधना और पूजन करते है, जो की आध्यात्मिक रूप से महत्व पूर्ण है, यह व्यक्ति में संयम और अनुशासन का प्रवाह करता है और मानसिक शक्ति प्रदान करता है. नवरात्रों के दिनों में भक्त पूरी पवित्रता से माता की आराधना करते है, जो की मन और आत्मा की शुद्धी के लिए जरूरी है.
अगर नवरात्रों के महत्व को ज्योतिषशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो चैत्र नवरात्रा मे ही सूर्य 12 राशियों के भ्रमण का चक्र पूरा करता है, और अगला चक्र शुरू करने के लिए पहली राशी मेष में प्रवेश करता है. मेष राशी अग्नि तत्व की है और सूर्य का मेष राशी में प्रवेश करना गर्मियों की शुरुआत का सूचक माना जाता है.
अगर नवरात्रों के महत्व को ज्योतिषशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो चैत्र नवरात्रा मे ही सूर्य 12 राशियों के भ्रमण का चक्र पूरा करता है, और अगला चक्र शुरू करने के लिए पहली राशी मेष में प्रवेश करता है. मेष राशी अग्नि तत्व की है और सूर्य का मेष राशी में प्रवेश करना गर्मियों की शुरुआत का सूचक माना जाता है.
वैज्ञानिक रूप से भी चैत्र नवरात्रो का बहुत महत्व है, जब चैत्र और आश्विन महीने की नवरात्रो की शुरुआत होती है तो ऋतुओ में बदलाव हो रहा होता है, चैत्र नवरात्री गर्मियों की शुरुआत के समय और आश्विन नवरात्री सर्दियों की शुरुआत के समय मनायी जाती है. इन ऋतू परिवर्तनो के कारण हमारे गलत खान पान से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है और हमारे बीमार होने के ज्यादा अवसर होता है. अत: नवरात्रों में रखे जाने वाले व्रत हमारे शरीर को स्वस्थ बनाये रखते है.
नवरात्री का पर्व शुरुआत है बदलाव का, आत्मा मन और शरीर के शुद्धिकरण का. बूरी आदतों को त्याग कर अच्छी आदतों को अपनाना. जीवन में शांति लाने और तनाव कम करने में भी इसकी महत्व पूर्ण भूमिका है. आशा है की नवरात्री का यह पर्व आपके जीवन में खुशहाली लाये.
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